बागवानों की आर्थिक चुनौतियाँ: हिमाचल सेब परिवहन संकट गहराया, 50,000 कार्टन जाम में फंसे
कुल्लू/मंडी। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश और भूस्खलन के चलते कुल्लू–मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। इसके चलते हजारों वाहनों की आवाजाही ठप हो गई और सबसे अधिक नुकसान सेब उत्पादकों को झेलना पड़ रहा है। अनुमान के मुताबिक लगभग 50,000 कार्टन सेब सड़क पर फंसे हुए हैं। इसने प्रदेश में “हिमाचल सेब परिवहन संकट” को और गहरा कर दिया है।
भारी बारिश और भूस्खलन ने बिगाड़ी स्थिति
पिछले एक सप्ताह से हो रही लगातार बारिश ने कुल्लू और मंडी जिलों की सड़कों को बुरी तरह प्रभावित किया है। नेशनल हाईवे के कई हिस्सों पर भूस्खलन होने से लंबा जाम लग गया। सेब सीज़न के चरम पर यह संकट किसानों और व्यापारियों की चिंता और बढ़ा रहा है।
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विशेषज्ञ बताते हैं कि सेब एक संवेदनशील फल है और समय पर मंडियों तक न पहुँचने पर इसका दाम गिर जाता है। ऐसे में हिमाचल सेब परिवहन संकट ने किसानों की मेहनत पर पानी फेरने का खतरा खड़ा कर दिया है।
50,000 कार्टन फंसे, करोड़ों का नुकसान
सेब सीज़न में हर दिन लाखों कार्टन शिमला, सोलन, दिल्ली और चंडीगढ़ की मंडियों तक भेजे जाते हैं। लेकिन सड़कों के बंद होने से हजारों ट्रक जाम में फंसे पड़े हैं।
कुल्लू मंडी मार्ग पर लगभग 50,000 कार्टन ट्रकों में लदे हैं।
लगातार नमी और देर से डिलीवरी की वजह से सेब की गुणवत्ता खराब होने लगी है।
अनुमान है कि इससे किसानों को कई करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
किसानों का कहना है कि अगर तुरंत वैकल्पिक मार्ग नहीं खोले गए तो हिमाचल सेब परिवहन संकट उनकी सालभर की मेहनत को बर्बाद कर देगा।
किसानों और बागवानों की चिंता
स्थानीय बागवानों ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि सेब सीज़न के दौरान परिवहन को प्राथमिकता दी जाए। कुल्लू जिले के एक बागवान ने कहा:
“हमने सालभर मेहनत करके बाग तैयार किए। लेकिन अब हमारी फसल ट्रकों में फंसी हुई है। मंडियों तक न पहुँचने पर हमें सही दाम नहीं मिलेगा। सरकार को हिमाचल सेब परिवहन संकट को तुरंत हल करना चाहिए।”
प्रशासन की कार्रवाई
एनएच विभाग ने कई जगह मशीनरी लगाकर सड़क बहाली का काम शुरू किया है। जिला प्रशासन का कहना है कि अगले 48 घंटों में मार्ग आंशिक रूप से खोलने की कोशिश की जा रही है। साथ ही, छोटे वाहनों को वैकल्पिक सड़कों से डायवर्ट किया जा रहा है।
लेकिन व्यापारियों का मानना है कि यह अस्थायी समाधान है। हर साल बारिश और भूस्खलन के कारण हिमाचल सेब परिवहन संकट पैदा होता है। इसे रोकने के लिए स्थायी योजना बनानी होगी।
आर्थिक प्रभाव
सेब हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। प्रदेश के कुल कृषि उत्पादों में से 60% से ज्यादा आय सेब से होती है। इस बार बारिश और सड़कों के जाम ने राज्य की अर्थव्यवस्था को करोड़ों का झटका दिया है।
मंडियों में दाम गिरने लगे हैं।
किसान ट्रांसपोर्ट और पैकिंग पर अतिरिक्त खर्च झेल रहे हैं।
बाजार तक न पहुँचने से सेब खराब होकर बर्बाद हो रहे हैं।
स्पष्ट है कि हिमाचल सेब परिवहन संकट केवल किसानों का ही नहीं, बल्कि प्रदेश की पूरी अर्थव्यवस्था का संकट बन गया है।
समाधान की तलाश
विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस समस्या के लिए लंबे समय की योजना बनानी होगी।
वैकल्पिक मार्गों का विकास – सेब सीज़न से पहले सड़कों की मरम्मत और नए लिंक रोड तैयार करने होंगे।
कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क – हर जिले में आधुनिक कोल्ड स्टोरेज बनें ताकि सेब लंबे समय तक सुरक्षित रह सकें।
परिवहन प्रबंधन – ट्रकों के लिए डिजिटल ट्रैकिंग और समयबद्ध शेड्यूल लागू किया जाए।
आपदा प्रबंधन – बारिश और भूस्खलन से निपटने के लिए हाईवे पर मजबूत सुरक्षा दीवारें और ड्रेनेज सिस्टम हों।
अगर इन उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हर साल यही समस्या दोहराई जाएगी और हिमाचल सेब परिवहन संकट स्थायी रूप से बना रहेगा।
निष्कर्ष
भारी बारिश और भूस्खलन से उत्पन्न हिमाचल सेब परिवहन संकट ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। 50,000 से ज्यादा कार्टन सड़क पर फंसे हैं और करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। यह केवल मौसमी आपदा नहीं बल्कि एक बड़ी आर्थिक चुनौती है, जो राज्य की कृषि और व्यापार दोनों को प्रभावित कर रही है।
सरकार को इस समस्या का स्थायी समाधान ढूँढ़ना होगा, ताकि भविष्य में सेब सीज़न के दौरान किसानों को ऐसे संकट का सामना न करना पड़े। अन्यथा, यह स्थिति हर साल दोहराई जाएगी और “हिमाचल सेब परिवहन संकट” किसानों की सबसे बड़ी चिंता बनकर कायम रहेगा।
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