Home राज्य हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार पर Supreme कोर्ट का Historic फैसला , हाई कोर्ट का फैसला 10 साल बाद किया रद्द

हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार पर Supreme कोर्ट का Historic फैसला , हाई कोर्ट का फैसला 10 साल बाद किया रद्द

by Dainik Janvarta
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हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला किया खारिज

नई दिल्ली/शिमला। हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में बेटियों को पैतृक संपत्ति का अधिकार देने वाले हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन इलाकों में अब भी कस्टमरी लॉ यानी रिवाजे आम ही मान्य रहेंगे, क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 यहां लागू नहीं होता।

खंडपीठ में न्यायमूर्ति संजय करोल और प्रशांत कुमार मिश्रा ने स्पष्ट किया कि हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार से जुड़े मामलों में सामाजिक परंपराएं और स्थानीय रिवाज ही प्रमुख आधार बने रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 23 जून 2015 के फैसले के पैराग्राफ 63 को रद्द कर दिया, जिसमें जनजातीय बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार देने की बात कही गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) के तहत यह कानून अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता। इसलिए हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार के संदर्भ में हाईकोर्ट का आदेश विधिक रूप से असंगत है।

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अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में बदलाव का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है, न्यायालय के पास नहीं।
फैसले में न्यायालय ने मधु किश्वर बनाम बिहार राज्य, अहमदाबाद विमेन एक्शन ग्रुप बनाम भारत संघ, और तिरथ कुमार बनाम दादूराम जैसे मामलों का भी उल्लेख किया।

अदालत ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना जारी नहीं करती, तब तक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हिमाचल जनजातीय संपत्ति अधिकार को लेकर किसी भी संशोधन या बदलाव के लिए न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित जनजातियां इस अधिनियम से बाहर हैं, और इन्हें शामिल करने या हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है।

याचिकाकर्ता सुनील करवा और नवांग बोध ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जनजातीय समाज की परंपराओं और सामाजिक ढांचे की रक्षा करने वाला ऐतिहासिक निर्णय है।

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