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मौसम का कहर: हिमाचल में 166 मौतें, 40 लापता और ₹3,000 करोड़ का damage | Monsoon Disaster

by Sanjay Gupta
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हिमाचल में रेड अलर्ट के बीच भूस्खलन से बंद सड़कें

मौसम का कहर: हिमाचल में मानसून से भारी तबाही, अब तक 166 मौतें, 40 लापता, नुकसान ₹3,000 करोड़ के पार

शिमला: हिमाचल प्रदेश में इस बार का मौसम का कहर किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं रहा। लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने प्रदेश की नदियों और नालों को उफान पर ला दिया है। इसका सीधा असर पहाड़ी गांवों से लेकर शहरों तक देखने को मिला है। अब तक 166 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 40 से अधिक लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। प्रशासनिक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश को कुल मिलाकर ₹3,000 करोड़ से अधिक का आर्थिक नुकसान हो चुका है।

गांव-शहर दोनों तबाह

मौसम का कहर इस बार ऐसा टूटा कि न केवल पहाड़ी ढलानों पर बसे गांव उजड़े, बल्कि शहरी इलाकों में भी बाढ़ जैसी स्थिति बन गई। कई स्थानों पर पुल बह गए, सड़कें टूट गईं और सैकड़ों घर जमींदोज हो गए। ग्रामीण इलाकों में खेत बह जाने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं, शहरों में दुकानों और बाजारों में पानी भर जाने से व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

मौत का आंकड़ा बढ़ा

आपदा प्रबंधन विभाग की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि भारी बारिश, भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ से अब तक 166 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कई परिवारों ने एक साथ अपने घर के कई सदस्यों को खो दिया है। यही नहीं, 40 लोग अब भी लापता हैं जिनकी तलाश में एनडीआरएफ और राज्य आपदा प्रबंधन की टीमें लगातार जुटी हुई हैं।

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राहत और बचाव कार्य

मौसम का कहर झेल रहे इलाकों में राहत कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और सेना की मदद से हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। कई गांवों को अब भी हेलीकॉप्टर से खाद्य सामग्री और दवाइयाँ पहुँचाई जा रही हैं क्योंकि सड़क संपर्क पूरी तरह टूट चुका है। बिजली और पानी की आपूर्ति ठप होने से लोगों को अतिरिक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

आर्थिक नुकसान का बड़ा बोझ

प्रदेश सरकार ने प्राथमिक आकलन के आधार पर बताया है कि अब तक कुल नुकसान ₹3,000 करोड़ से अधिक पहुंच चुका है। इसमें सड़कें, पुल, बिजली परियोजनाएँ, पानी की सप्लाई स्कीमें और कृषि भूमि का सबसे अधिक नुकसान हुआ है। पर्यटन क्षेत्र, जो हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। होटल, होम-स्टे और ट्रैवल एजेंसियों को करोड़ों का घाटा हुआ है।

किसानों और बागवानों पर मार

मौसम का कहर का सबसे बड़ा असर किसानों और सेब बागवानों पर पड़ा है। भारी बारिश और भूस्खलन के कारण हजारों एकड़ खेत व बाग नष्ट हो गए हैं। ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ठप होने से फसल और सेब की खेप मंडियों तक नहीं पहुँच पाई। इससे किसानों और बागवानों को लाखों का सीधा घाटा हुआ है।

पर्यटन पर असर

हिमाचल का पर्यटन सीजन इस बार लगभग पूरी तरह बर्बाद हो गया है। जहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटक हिमाचल की ठंडी वादियों का लुत्फ़ उठाने आते थे, वहीं इस बार उन्हें घर लौटना पड़ा। मनाली, शिमला, कुल्लू और धर्मशाला जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल बारिश और भूस्खलन से कई दिनों तक बंद रहे। होटल और पर्यटन कारोबारियों का कहना है कि उनकी सालभर की कमाई का बड़ा हिस्सा इस आपदा की भेंट चढ़ गया है।

प्रशासन और सरकार की चुनौतियाँ

मौसम का कहर से निपटने के लिए सरकार और प्रशासन पर भारी दबाव है। मुख्यमंत्री ने केंद्र से विशेष पैकेज की मांग की है ताकि पुनर्निर्माण कार्य शीघ्र शुरू हो सके। केंद्र सरकार ने भी स्थिति को गंभीर मानते हुए मदद का आश्वासन दिया है। राहत कैंपों में हजारों लोग शरण लिए हुए हैं, जिन्हें भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।

पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनी

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम का कहर भविष्य में और बढ़ सकता है क्योंकि हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। अनियंत्रित निर्माण, अवैज्ञानिक खनन और जंगलों की कटाई ने पहाड़ों को और असुरक्षित बना दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भयावह हो सकती है।

लोगों की जद्दोजहद

प्रदेश के लोग इस समय दहशत और अनिश्चितता में जी रहे हैं। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए यह ग़म अपार है। वहीं, जिनके घर टूट गए या खेत बह गए, वे भविष्य की चिंता में डूबे हुए हैं। स्कूल और कॉलेज बंद हैं, बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

निष्कर्ष
हिमाचल में इस बार का मौसम का कहर लोगों की ज़िंदगी और प्रदेश की अर्थव्यवस्था दोनों पर भारी पड़ा है। मौत का आंकड़ा 166 पार कर चुका है, 40 लोग लापता हैं और नुकसान ₹3,000 करोड़ से ऊपर पहुँच गया है। राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन यह आपदा एक बार फिर चेतावनी देती है कि प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने का नतीजा कितना भयावह हो सकता है।

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