शी-हॉट बागपशोग की महिलाओं ने तैयार किया “भगवती” उत्पाद: स्वरोजगार से होगी आर्थिकी सुदृढ़
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नाहन, 01 अप्रैल: पच्छाद उपमंडल में कार्यरत उपमंडल दंडाधिकारी डॉ. प्रियंका चंद्रा ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है। उन्होंने बागपशोग क्षेत्र में क्रियाशील शी-हॉट समूह की 23 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए जैविक उत्पाद तैयार करने के लिए प्रेरित किया।
इस पहल के तहत “भगवती” नामक उत्पाद तैयार किया गया, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों का चित्रण तथा श्लोक भी अंकित हैं। यह उत्पाद पूरी तरह से प्राकृतिक एवं पर्यावरण अनुकूल है। इसे गाय के गोबर, लौहबान, जंगली फूल, कपूर और हवन सामग्री के मिश्रण से तैयार किया गया है, जो घर के वातावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
परंपरा और नवाचार का संगम
महिलाओं ने मां दुर्गा की पोशाक को भी विशेष रूप से तैयार किया, जिसमें घर में बची हुई कपड़ों की कतरनों का उपयोग किया गया। इन कपड़ों को ब्रास के फूल, चुकंदर और तुलसी की पत्तियों से रंग दिया गया, जिससे यह पूरी तरह प्राकृतिक बना।
इस उत्पाद की सजावट एवं चित्रकारी के लिए राजकीय महाविद्यालय सरांहा की छात्रा कुमारी जिन्या और पांवना स्कूल की कला अध्यापक सीमा की सहायता ली गई, जिससे इसका पैकेजिंग डिज़ाइन आकर्षक बना।
जिला स्तरीय मेले में मिली सराहना
यह कार्य मार्च 2025 में शुरू किया गया और इसे 30 मार्च 2025 को चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन जिला स्तरीय मां नगरकोटी मेला में प्रदर्शनी के लिए रखा गया। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष विनय कुमार ने इस उत्पाद का विक्रय शुभारंभ किया।
31 मार्च 2025 को उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने मेले में आयोजित प्रदर्शनियों का अवलोकन किया और डॉ. प्रियंका चंद्रा तथा शी-हॉट की महिलाओं द्वारा तैयार किए गए इस उत्पाद की सराहना की। उन्होंने इसे महिलाओं की आर्थिकी को सुदृढ़ करने वाला एक सराहनीय कदम बताया।
आगे की योजना
डॉ. प्रियंका चंद्रा ने बताया कि शी-हॉट समूह की महिलाओं द्वारा इस उत्पाद को जिला सिरमौर में आयोजित विभिन्न मेलों में प्रदर्शनी और विक्रय के लिए रखा जाएगा। साथ ही, जिला के प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध कराने की योजना भी बनाई जा रही है, जिससे इस पहल को और अधिक विस्तार मिलेगा।
यह पहल न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि पारंपरिक उत्पादों को आधुनिक स्वरूप देकर उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर कर रही है।